आयुर्वेदाचार्य नाड़ीवैद्य डॉ. नागेन्द्र नारायण शर्मा ने वर्षा ऋतु में खान-पान और जीवन शैली के विषय दी जानकारी
आयुर्वेद चिकित्सा विशेषज्ञ आयुर्वेदाचार्य नाड़ीवैद्य डॉ. नागेन्द्र नारायण शर्मा ने वर्षा ऋतु में खान-पान और जीवन शैली के विषय मे जानकारी देते हुये बताया की
आयुर्वेद का मुख्य प्रयोजन स्वस्थ व्यक्ति के स्वास्थ्य की रक्षा करना तथा रोगी व्यक्ती के रोग को दूर करना है। इस प्रयोजन की पूर्ति हेतु आयुर्वेद में दिनचर्या, रात्रिचर्या एवं ऋतुचर्या का विधान बताया गया है। आयुर्वेद में ऋतुओं को वर्षा, शरद, हेमन्त, शिशिर, बसन्त तथा ग्रीष्म इन छः ऋतुओं में बाँटा गया है। इन ऋतुओं में अलग-अलग ऋतुचर्या, दिनचर्या एवं रात्रिचर्या बतायी गयी है। यदि व्यक्ती इन ऋतुओं में बतायी गयी चर्याओं विधिपूर्वक पालन करता है तो ऋतु परिवर्तन से होने वाली मौसमी बीमारियों से ग्रसित होने से बचा जा सकता है।
वर्षा ऋतु में बारीश होने के कारण आसपास के वातावरण मे नमी और गंदगी फैल जाती है। जिसके कारण मच्छर, मक्खियां, कीट आदि बढ़ जाते हैं और संक्रमण होने का खतरा भी बढ़ जाता है।आयुर्वेदानुसार वर्षा ऋतु में नमी होने के कारण वात दोष असंतुलित हो जाता है और हमारी पाचन शक्ति कमजोर हो जाती है। इन सबके कारण भूख कम लगना, जोड़ों के दर्द, गठिया, सूजन, खुजली, फोड़े-फुंसी, दाद, पेट में कीड़े, नेत्राभिष्यन्द (आंख आना), मलेरिया, टाइफाइड, दस्त और अन्य रोग होने की सम्भावना बढ़ जाती है। इन सबसे बचाव हेतु अम्ल, लवण, स्नेहयुक्त भोजन, पुराने अनाज चावल, जौ, गेंहू, राई, खिचड़ी, मूंग, लौकी परवल, लौकी, तरोई, अदरक, जीरा, मैथी, लहसुन आदि वात का शमन करने वाले तथा पाचक अग्नि को बढ़ाने वाले हल्के, सुपाच्य, ताजे एवं गर्म खाद्य पदार्थों का सेवन करना चाहिये।
साथ ही वर्षा ऋतु में पत्ते वाली सब्जी, चना, मोंठ, उड़द दाल, मटर, मसूर, आलू, कटहल, अरबी, भिण्डी, दही पचने में भारी खाद्य पदार्थों तथा बासी भोजन का सेवन नहीं करना चाहिये। संशोधित जल का प्रयोग करना चाहिए, कुंआ, तालाब और नदी के जल का प्रयोग बिना शुद्ध किये नहीं करना चाहिए। पानी को उबाल कर उपयोग में लेना श्रेष्ठ है।
जीवन शैली- वर्षा ऋतु में अभ्यंग अर्थात् शरीर में तेल की मालिश करनी चाहिये।स्वच्छ एवं हल्के वस्त्र पहनने चाहिये, ऐसे स्थान पर शयन करना चाहिये जहां अधिक हवा और नमी न हो। भीगने से बचना चाहिये यदि भीग गये हों तो यथाशीघ्र सूखे कपड़े पहनने चाहिये, नंगे पैर, गीली मिट्टी या कीचड़ में नहीं जाना चाहिये, सीलन युक्त स्थान पर नहीं रहना चाहिए तथा बाहर से लौटने पर हांथ-पैरों को अच्छी तरह धोकर पोंछ लेना चाहिये।वर्षा ऋतु में दिन में सोना, खुले में सोना, रात्रि जागरण, अत्यधिक व्यायाम, धूप सेवन, अत्याधिक परिश्रम, अज्ञात नदी, जलाशय में स्नान नहीं करना चाहिये। तथा कीट-पतंग एवं मच्छरों से बचने के लिए मच्छरदानी का उपयोग करने के साथ साथ घर के आसपास पानी इकठ्ठा न होने दें एवं साफ़-सफाई पर विशेष ध्यान दें।