चक्रधर समारोह से रायगढ़ को राष्ट्रीय स्तर पर कला व संस्कृति नगरी के रूप में मिली पहचान को मिटाने का षडयंत्र कर रही कांग्रेस
जिला भाजपा अध्यक्ष उमेश अग्रवाल ने किया आक्रोश व्यक्त
रायगढ़। चक्रधर समारोह के जरिए रायगढ़ को राष्ट्रीय स्तर पर कला व संस्कृति नगरी के रूप में मिली पहचान को मिटाने का षडयंत्र करने का आरोप कांग्रेस पर लगाते हुए जिला भाजपा अध्यक्ष उमेश अग्रवाल ने गहन आक्रोश व्यक्त किया है । उन्होंने कहा कांग्रेस चक्रधर समारोह का आयोजन कराए जाने को लेकर अपनी स्थिति स्पष्ट करे अन्यथा यह आयोजन जन सहयोग से किया जायेगा । कला संस्कृति की विरासत वाली नगरी रायगढ़ की पहचान मिटाने के लिए जनता विधायक प्रकाश नायक को कभी माफ नही करेगी। रायगढ़ के कलाकारों की आत्मा चक्रधर समारोह में बसती है। राजा भूपदेव सिंह के द्वितीय पुत्र गोंड़वंश के आदिवासी राजा चक्रधर सिंह का जन्म भाद्र पद संवत 1862 को हुआ । उनके जन्मदिवस को राजकीय समारोह के रूप में मनाने के लिए “ऐतिहासिक गणेश मेला’ का आयोजन किया जाता है जो रायगढ़ के सांस्कृतिक गौरव के रूप में पूरे देश मे प्रसिद्ध हुआ जिसमे देश के शीर्षस्थ प्रतिष्ठित कला , संगीत एवं साहित्य साधको और क्रीड़ा जगत की प्रख्यात प्रतिभाओं को आमंत्रित कर सम्मानित किया जाता था। महाराजा चक्रधर सिंह ऐसे ही विशिष्ट सांगीतिक व्यक्तित्व के धनी और कला पारखी नरेश थे। जिला भाजपा अध्यक्ष उमेश अग्रवाल ने कहा गणेश मेला एवम चक्रधर समारोह के जरिए ही रायगढ़ की कला एवं संस्कृति को पर्याप्त संरक्षण हासिल हो पाया। इसकी वजह से रायगढ़ को सांस्कृतिक राजधानी और कला की तीर्थस्थली के रूप में पूरे राष्ट्र में प्रसिद्धि प्राप्त करने का गौरव हासिल हुआ। रायगढ़ दरबार संगीत के उद्धारक प. विष्णु दिगंबर पलुस्कर , प. ओंकार नाथ ठाकुर , प. भूषण संगीताचार्य , बड़े रामदास , उस्ताद इनायत खां , कादर बक्श , मुनीर खां , कंठे महाराज , प. बिंदादीन , सीता राम जी , हनुमान प्रसाद , सुखदेव महाराज , सुंदर प्रसाद , जयलाल , लच्छु जैसे प्रख्यात साधको की रायगढ़ तपोभूमि रही है। महाराजा चक्रधर सिंह ने देश के शीर्षर्थ नृत्याचार्यो से प. कार्तिकराम , कल्याण दास महंत , बर्मनलाल एवं फिरतु महाराज को कत्थक की शिक्षा दिलाई जिन्होंने राष्ट्रीय ख्याति अर्जित की । मध्यप्रदेश शासन के इस आयोजन के मंच में शिरकत करने वाले पंडित कार्तिकराम , कल्याण दास , फिरतु महाराज एवं बर्मनलाल जी को शिखर सम्मान से सम्मानित किया। संगीत सम्राट राजा चक्रधर सिंह ने कत्थक की एक अभिनव शास्त्रीय शैली विकसित की जो रायगढ़ कत्थक घराना के रूप मे प्रसिद्ध है। महाराजा चक्रधर सिंह के देहांत के बाद उनके पुत्र राजा ललित सिंह , कुमार सुरेंद्र प्रताप सिंह , और कुमार भानुप्रताप सिंह के द्वारा कई वर्षों से इस परंपरा का निर्वहन किया गया । 1984 में सर्वोदयी नेता केयूर भूषण की अध्यक्षता में राजपरिवार के सदस्यों , साहित्यकारो एवं संगीतकारो की एक सभा हुई । प. मुकुटधर पांडेय , प. किशोरी मोहन त्रिपाठी , लाल फूलचन्द्र श्रीवास्तव , जगदीश मेहर , डॉ. बलदेव , मनहर सिंह ठाकुर वेदमणि सिंह ठाकुर , रजनी कांत मेहता , राजपरिवार के पूर्व सांसद सुरेंद्र कुमार सिंह , कुमार भानु प्रताप सिंह , उर्वशी देवी एवं देवेंद्र प्रताप सिंह ( सदस्य ) इनके संरक्षक हुए । राजनीति से परे वरिष्ठ पत्रकार , साहित्यकार , संगीतकार एवं प्रबुद्ध नागरिकों की इस आयोजन में हिस्सेदारी बढ़ती गई। छत्तीसगढ़ के प्रसिद्ध संत कवि पवन दीवान द्वारा राज महल के परिसर में गणेश पूजा के दिन 18 सितंबर 1985 को चक्रधर समारोह का श्री गणेश किया गया। दशकों से होने वाले इस आयोजन की वजह से ही रायगढ़ जिले को राष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिल पाई है। प. मुकुटधर पांडेय ने इसे रायगढ़ के सांस्कृतिक जीवन मे महत्वपूर्ण मानते हुए सार्वजनिक रूप से मनाए जाने वाला गणेश उत्सव निरूपित किया। महल का गणेश उत्सव राजकीय था । यह एक प्रकार से नए युग की शुरुवात थी। छत्तीसगढ़ शासन द्वारा चक्रधर समारोह 2001 से शुरू किया गया था। शासन ने इस परंपरा को आगे समृद्ध करते हुए 10 दिवसीय समारोह को शासकीय मान्यता प्रदान कर संस्कृतिक विरासत के संरक्षण एवं उन्नयन में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह किया और रायगढ़ को पुनः कला एवं संगीत की तीर्थस्थली के रूप में विकसित करते हुए गौरवान्वित किया। संस्कृतिक विभाग , छत्तीसगढ़ शासन ,जिला प्रशासन एवं जन सहयोग से रायगढ का ऐतिहासिक राष्ट्रीय सांस्कृतिक उत्सव गणेश मेला चक्रधर समारोह का यह गौरवपूर्ण आयोजन आज भी दूर-दूर तक चर्चित है । कोरोना महामारी के दौरान भी चक्रधर समारोह आयोजन को ऑन लाइन किया गया लेकिन इसकी परंपरा जारी रही । विडम्बना है कि कांग्रेस अब इस आयोजन को लेकर बहानेबाजी कर किसी तरह इस आयोजन को बंद कर कला संस्कृति की पहचान मिटाने पर अमादा है । उमेश अग्रवाल ने नाराजगी जाहिर करते हुए कहा चक्रधर समारोह आयोजन को लेकर बहाने बाजी बंद होनी चाहिए। इस बड़े आयोजन को लेकर कांग्रेस ने ओछी राजनीति कर रायगढ़ की सांस्कृतिक पहचान को मिटाने की कुत्सिक भावना लिए हुए आयोजन के प्रति पर्याप्त उदासीनता ओढ़ ली है । जनभावना को ध्यान में रखते हुए आयोजन को लेकर समय रहते सजग नही हुई तो उसे ना केवल व्यापक जनाक्रोश का सामना करना पड़ेगा वरन इसके भयंकर दुष्परिणाम भोगने होंगे । भाजपाध्यक्ष ने आगाह किया है रायगढ़ की जनता अपने प्रजापालक राजा की याद को हरगिज़ विस्मृत नही होने देगी और छत्तीसगढ़ शासन तथा कांग्रेस की कलुषित विचारधारा के चलते कार्यक्रम परवान नही चढ़ा तो अपने बलबूते वह इस आयोजन का बीड़ा उठा लेगीl