जीव जन्म लेता है तब माया साथ आती है और मनुष्य अपने शरीर व माया को प्रधान मान लेता है जबकि शरीर नश्वर है-श्री ललित वल्लभ जी महाराज
कोरबा/चिल्ड्रन पार्क रवि शंकर शुक्ल नगर में चल रहे श्री मद्भागवत कथा के तृतीय दिवस श्री धाम वृंदावन के प्रख्यात भागवत प्रवक्ता श्री ललित वल्लभ जी महाराज ने श्रोताओं को संबोधित करते हुए कहा कि जब जीव जन्म लेता है तब माया साथ आती है और मनुष्य अपने शरीर व माया को प्रधान मान लेता है जबकि शरीर नश्वर है, कर्म ऐसा करो जो निष्काम हो वही सच्ची भक्ति है ,जीव जब गर्भ में रहता है तब उसे गर्भ में प्रभु का दर्शन होता है, जब वह जन्म लेता है तब बोलता है कहां-कहां बो कहा है जिसका मुझे गर्भ में दर्शन हो रहा था, गर्भ में जीव भगवान से कहता है कि मुझे इसमें से निकालो मैं आपका भजन करूंगा लेकिन गर्व के बाहर माया में लिप्त हो जाता है और भूल जाता है कि मैंने वचन दिया था की भजन करूंगा ,प्रभु चरण ,शरण, आने से ही कल्याण निश्चित है कथा प्रसंग को आगे बढ़ाते हुए महाराज जी ने ध्रुव चरित्र वर्णन किया, ध्रुव चरित्र में बताया कि ध्रुव की तरह अटल प्रतिज्ञा होनी चाहिए उन्होंने छोटी सी उम्र में प्रभु का साक्षात्कार कर लिया, इंसान को कभी अभिमान में नहीं रहना चाहिए,अभिमान युक्त यज्ञ कभी सफल नहीं होते ,आगे वर्णन करते हुए जड़ भरत चरित्र, नरको का वर्णन ,अजामिल उपाख्यान एवं भक्त प्रहलाद चरित्र का वर्णन किया भारत महिमा में कहा कि भारत भूमि स्वर्ग से भी श्रेष्ठ है ,क्योंकि न तो स्वर्ग में गंगा बहती है न यमुना, न राम कथा होती है न कृष्ण कथा ,प्रहलाद चरित्र में बताया कि भक्ति नौ प्रकार की होती है जीव नो प्रकार की भक्ति में से एक का भी सहारा ले ले तो उद्धार सुनिश्चित है ,इसी प्रसंग के साथ पूज्य महाराज श्री ने कथा का तृतीय दिवस विश्राम किया, श्री हित सेवा सहचरी समिति ने श्रद्धालु श्रोताओं से कथा श्रवण करने का निवेदन किया है