पत्रकारिता जगत को बदनाम करने में तुले कुछ लोग…
करतला ब्लॉक में सबसे ज्यादा मामले
कोरबा ll पत्रकार, एक ऐसा शब्द जिसे सुनते ही आंखों के सामने एक ऐसे शख्स की छवि बचपन मे बनती थी मानो कोई कलम का पुजारी हो, जिसको न तो सत्ता का खौफ़ हो,झूठे मुकदमो का, न समाज के बाहुबलियों के निरकुंश दमनात्मक नीतियों का। एक प्रखर वक्ता, लेखक,मुखमंडल में चमक लिए मानो कोई सिपाही हो जो किसी गरीब,कमजोर की आवाज़ बनकर असत्य से टकरा जाए.. पर जैसे जैसे वक्त बढ़ते गया राजनीति पत्रकारिता में हावी होते गयी पत्रकारों की छवि भी धूमिल होते गयी। “कुछ पत्रकार पत्रकार न होकर पक्षकार बन अपनी तिजोरी भरते गये”.. बिन पगार पूरी तरह जनता के हित मे तैयार रहने वाले कलम के पुजारी अपने नैतिक मूल्य को दरकिनार करते किसी न किसी के पक्षकार बनके जनता को वही खबर परोसने लगे जो उन्होंने अपने हिसाब से बनाये थे। आज तो आपको हर चौथी गाड़ी में press या media लिखा दिख जायेगा।
पत्रकारिता के क्षेत्र में दिन प्रतिदिन गिरावट आ रही है इस मुद्दे पर आज देश में गर्मा-गर्म बहस भी छिड़ चुकी है। देश के लोकतंत्र का मजबूत चौथा स्तम्भ(शेर) कहा जाने वाला पत्रकारिता का क्षेत्र भी अब इस भ्रष्टाचार से अछूता नही रहा। आज पैसे की चमक ने पत्रकारिता के मिशन को व्यवसाय बना दिया।
आज पत्रकारिता के क्षेत्र में दिन-प्रतिदिन बढ़ती तादाद में अशिक्षित,कम पढ़े लिखे और अप्रशिक्षित संवाददाताओं की एक बड़ी दिशाहीन सेना का प्रवेश भी पत्रकारिता के क्षेत्र में भ्रष्टाचार बढ़ाने में बड़ा योगदान दे रहा है। ये वो लोग है जो जेब में कलम लगाकर रोज सुबह शाम सरपँच, जनप्रतिनिधियों, सरकारी अफसरों और दफ्तरों के चक्कर काटते रहते है।
प्रेस से जुड़कर कुछ ग्रामीण पत्रकारों ने अपने नापाक उद्देश्यों की पूर्ति के लिये सब से शक्तिशाली संसाधन मीडिया को गुपचुप तरीके से ग्रामीण मीडिया का दर्जा दिला दिया। ग्रामीण मीडिया से मेरा मतलब है संवाददाता या पेपर बंटाने वाले इत्यादि से। लेकिन ये मुद्दे हैं, हमे सरोकार है कोरबा,कटघोरा ,पोडी,पाली,करतला या अपने आसपास की समस्या से, जिसमे बरपाली करतला तो मानो पत्रकारों का गढ़ बन गया है अब ये पत्रकार सच्चे हैं या झूठे ये वक्त ही बताएगा।
बैग पकड़ बाईक उठा चल पड़े रोजी रोटी की तलाश में–
करतला ब्लॉक में कुछ पत्रकारों की सेना ऐसी है जिन्हें पत्रकारिता सबसे आसान व्यवसाय लगता है क्योंकि विभाग,पँचायत औऱ अन्य संस्थानों में जाकर, खबर प्रकाशन और आरटीआई का धौंस दिखाकर,या अन्य तिकड़मबाजी से पैसों की मांग की जाती है ऐसी शिकायत आये दिन विभाग के अधिकारियों और सरपंचों से सुनने को मिलते रहती है। और ये अधिकारी,जनप्रतिनिधि और कर्मचारी ऐसे लोगों से परेशान तो हैं लेकिन कौन टेंशन पाले ये सोचकर 100-200 देकर चलता करने में विश्वास रखते है। जिनसे ऐसे कथित पत्रकारों का मनोबल और बढ़ता जाता है।
अधिकारी, सरपँच ही बढ़ा रहे ऐसे पत्रकारों का मनोबल–
कोई आपको ठगे ये उसकी चालाकी तो है लेकिन आपकी कमजोरी भी है। आज 3000-5000 खर्च करके कोई भी किसी भी तथाकथित चैनल का रिपोर्टर बन जा रहा है,क्योंकि इससे सस्ता और अच्छा कमाई का साधन वर्तमान में नही है। लेकिन अधिकारियों और जनप्रतिनिधियों को भी इतनी समझ तो रखनी होगी कि जो व्यक्ति उनके समक्ष आया है उक्त पत्रकार द्वारा समाचार लगाया जाता है या नही, वो किस क्षेत्र का पत्रकार है, उसकी विशेषता क्या है? इन सबसे न तो सरपंचों को मतलब रहता है न ही विभागीय अधिकारियों को। और फिर बाद में सिर पीटते नज़र आएंगे की पत्रकारों ने परेशान कर दिया है। ये तो मानो हिंदी फिल्म स्पेशल 26 की कहानी हो गयी।अधिकारियों – सरपंचों को चाहिए कि ना वह भ्रष्टाचार में रहें और ना ही किसी को पैसे देl