लड़े हैं जीते हैं: अंबिकापुर में आयोजित कार्यक्रम में सरगुजा के कोरोना योद्धाओं से संबंधित 9 वृत्तचित्रों का प्रदर्शन किया गया
अंबिकापुर, 27 अगस्त, 2023। अंबिकापुर के पीजी कॉलेज ऑडिटोरियम में कोरोना योद्धाओं के सम्मान में आयोजित लड़े हैं, जीते हैं कार्यक्रम में 9 कोरोना वारियर्स से संबंधित वृत्त चित्र का प्रदर्शन किया गया। तेज़ी से फैलने वाले कोरोना वायरस के प्रकोप का सामना करते हुए इन कोरोना योद्धाओं ने ज़रूरतमंदों की सेवा की। खुद जोखिम के बीच रहकर भी अपने कर्तव्यों का निर्वहन करते रहे। यहाँ तक कि इन्हें भोजन करने तक का समय नहीं मिलता था। बीच में अगर ये घर गए तो परिवार के पास भी नहीं जा सकते थे।
ऐसे कोरोना वारियर्स में एक हैं- श्रीमती सुमन सिंह। अंबिकापुर जिला अस्पताल में कार्यरत स्टाफ नर्स सुमन सिंह अपने सेरिब्रल पाल्सी से पीड़ित बच्चे को घर में छोड़कर कोविड के मरीज़ों की देखभाल के लिए पहुँच गईं। इस बीच वह स्वयं भी कोविड 19 से पीड़ित हो गईं। उन्होंने किसी भी परिस्थिति में हार नहीं मानी।
मेडिकल कॉलेज हॉस्पिटल में पदस्थ फार्मासिस्ट तरुण आदित्य दूबे भी उन लोगों में से हैं जिन्होंने कठिन परिस्थिति में सेवाएँ दी। वे अस्पताल के ऑक्सीजन प्रभारी थे। वे भी अपने घर में बुज़ुर्ग माँ-बाप और छोटे बच्चे को छोड़कर मरीज़ों की सेवा में लगे थे। उनकी प्रमुख ज़िम्मेदारी क्रिटिकल मरीज़ों की ऑक्सीजन की आपूर्ति को बनाए रखने की थी। इस बीच ऐसा भी समय आया कि अस्पताल में अचानक ऑक्सीजन की मांग बढ़ गई। जल्द से जल्द ऑक्सीजन सिलेंडर को रिप्लेस करने की ज़रूरत आन पड़ी। तब तरुण सिंह ने ऑक्सीजन सिलेंडर खुद ढोकर बाहर ट्रक से आईसीयू तक ले गए।
जिला अस्पताल अंबिकापुर के लैब टेक्नीशियन मनीष शर्मा ने आइसोलेशन वार्ड की कठिन ड्यूटी भी की। जहाँ उन्होंने परिवार से दूर रहकर 6-6 घंटे पीपीई किट में अपना कर्तव्य निभाया। इसी दौरान उनकी माता जी बीमार पड़ गई। हाईब्लड प्रेशर के कारण उनकी हालत भी अच्छी नहीं थी। इतनी मुश्किल परिस्थिति के बावजूद उन्होंने अपना हौसला बनाए रखा। उन्होंने अपने कर्तव्य को प्राथमिकता दी ताकि कोरोना टेस्टिंग की रफ्तार कम न हो।
जब कोविड 19 अपने चरम पर था। तब बड़ी जनसंख्या को सुरक्षित रखने के लिए संक्रमितों की पहचान ज़रूरी थी। ऐसे समय में जब लोग घर से निकलने से डर रहे थे तब मितानिनें घर-घर घूमकर सर्वे कर रही थी। ज़रूरतमंदों को दवाइयों की किट का वितरण कर रही थी। इन मितानिनों में ऐसी भी थीं जो खुद चोटिल थीं। मुश्किलें कई थीं, लेकिन कोई मुश्किल इनका रास्ता नहीं रोक सकी। इन्होंने अपना कर्तव्य निभाया कोरोना के प्रसार को रोकने में योगदान दिया।
धीरेंद्र प्रताप सिंह, शहरी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र नवापारा में पदस्थ पर्यवेक्षक हैं। कोरोना काल में उनकी ड्यूटी कंटेनमेंट ज़ोन के निर्माण और उस क्षेत्र का सर्वे करने की थी। उनकी परेशानियाँ और मुश्किलें कार्यक्षेत्र तक ही सीमित नहीं थीं। उन्हें यह ध्यान रखना पड़ता था कि वे अपने घर जाएँ तो परिवार वालों से पर्याप्त दूरी बनी रहे। धीरेंद्र प्रताप सिंह जी ने इसे अपने काम के हिस्से के रूप में लिया। पूरे कोरोनाकाल में उन्होंने पूरी निष्ठा और समर्पण के साथ अपना योगदान दिया।
अंबिकापुर ने स्वच्छता और अपशिष्ट प्रबंधन के लिए कई उपलब्धियाँ हासिल की हैं। इसमें एक बड़ा योगदान डोर टू डोर कचरा एकत्र करने वाली स्वच्छता दीदियों का भी है। उन्होंने हिम्मत दिखाकर वैश्विक महामारी कोविड 19 के दौरान भी इस काम को रुकने नहीं दिया। अंबिकापुर की एसएलआरएम सेंटर इन्चार्ज श्रीमती संगीता गुप्ता उनमें से हैं जिन्होंने कोरोना काल में भी पूरी निष्ठा के साथ अपना काम किया। अंबिकापुर में स्वच्छता की बागडोर हीरामणि, शकुंतला सहित शहर स्वच्छता दीदियों के हाथ में थी। उन्होंने इसे बखूबी संभाला और अपशिष्ट प्रबंधन में योगदान दिया।
लक्ष्मीपुर की एएनएम बिंदा सारथी ने कोरोनाकाल में लोगों को टीकाकरण के लिए प्रेरित किया। शुरू में लोगों में हिचक थी, टीके को लेकर लोगों झिझक बिंदा सारथी जैसी योद्धाओं ने दूर की। यहाँ तक कि बिंदा और उनके परिवार के सदस्य भी कोरोना से संक्रमित हुए, लेकिन उनके हौसले बुलंद थे। बिंदा सारथी को इसका मलाल नहीं था, बल्कि इस बात की संतुष्टि थी कि उन्होंने कोरोना के संक्रमण को रोकने के लिए हर संभव कदम उठाए।
जिला चिकित्सालय अंबिकापुर में पदस्थ पुलिस मेडिकल असिस्टेंट डॉ. महेंद्र साहू, असिस्टेंट सब इंस्पेक्टर विनय कुमार सिंह उन पुलिस कर्मियों में से थे जिन्होंने अपने विभाग के लोगों को संक्रमित होते देखा। उन्होंने स्वयं को परिवार से दूर रखा, कोविड प्रोटोकॉल का पालन किया और कोविड काल में अपना काम किया। लोगों को टीकाकरण के लिए प्रेरित किया। अपना हौसला बनाए रखा, दूसरों को हिम्मत दी और इस लड़ाई को जीतने में योगदान दिया।
कोरोना के विरुद्ध जंग में वो वारियर्स भी थे जिन्होंने इस वायरस के प्रकोप को खुद सहा। अस्पताल के कठिन माहौल में भी अपना हौसला बनाए रखा। अपनी हिम्मत टूटने नहीं दी, अपनी जिजीविषा से कोविड 19 को मात दी और स्वस्थ होकर लौट आए। सकारात्मक सोच संक्रमण से लड़ने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। इसी सकारात्मकता ने रवि अग्रवाल जैसे हज़ारों कोरोना संक्रमित मरीज़ों को उबरने में मदद की।
मुश्किलें थीं तो हौसला भी था। डर था तो हिम्मत भी थी, जीत का जज़्बा था, जीने की अदम्य उत्कंठा थी। इसलिए सरगुजा के कोरोना वारियर्स लड़े और जीत कर भी आए। इन कोरोना वारियर्स पर बने वृत्तचित्र का प्रदर्शन कर उनकी सफलता की कहानी लड़े हैं जीते हैं के मंच से लोगों के सामने लाई गई। वो कोरोनो वारियर्स जिनके योगदान के बिना जीतना लगभग असंभव था।