निभाई गई धूल पंचमी पर अनूठी परंपरा, कन्याओं ने बरसाई लाठियां, दिया आशीर्वाद
कोरबा। होली के पांच दिन बाद मनाया जाने वाला धूल पंचमी पंतोरा के लिए खास होता है। यहां मथुरा के बरसाना की तर्ज पर लट्ठमार होली खेली जाती है। लड़कियां पुरूषों पर लट्ठ बरसाती हैं। कन्याओं के हाथ से इस दिन मार खाना शुभ माना जाता है। लट्ठमार होली से पहले विशेष पूजा गांव के लोग करते हैं।
जिले की अंतिम सीमा क्षेत्र से लगे ग्राम पंतोरा में इस वर्ष भी धूल पंचमी के अवसर पर मां भवानी के मंदिर में पूरा गांव एकत्रित हुआ। यहां के लोगों को इस पर्व का बेसब्री से इंतजार रहता है। गांव के लोग इस त्योहार को उमंग और हर्षोल्लास के साथ मिलजुलकर मनाते हैं। शनिवार को धूल पंचमी के दिन दोपहर करीब 3.30 बजे शुरू हुई लट्ठमार होली देर शाम तक चली। इससे पूर्व सुबह से गांव के लोग तैयारी में जुटे रहे। मंदिर के पुजारी ने सबसे पहले यहां मंदिर में उपस्थित कुंवारी कन्याओं और बांस के लट्ठ की पूजा अर्चना की। मांदल की थाप पर लोग झूमने लगे। इसके साथ मंदिर परिसर से लाठी लेकर निकली कन्याएं अपना शिकार ढूंढ़ने लगीं। काफी संख्या में समूह बना कर गांव की हर गली में घूमने लगीं। जो भी इनके रास्ते में आता था, उन्हें इनके लट्ठ का सामना करना पड़ता। छोटे बच्चों से लेकर बड़े पुरूषों पर लाठियां बरसाई जाती है। इसके लिए लोग एक सप्ताह पहले से ही तैयारी करने लगते हैं।
यह दिन गांव वालों के लिए होली से बढ़कर होता है। इस दिन जमकर रंग गुलाल खेला जाता है। कुंवारी कन्याएं टोली बनाकर पुरूषों को दौड़ा-दौड़ा कर लाठी से पिटती हैं, तो वहीं महिलाएं छत के ऊपर से उन पर रंग फेंकती हैं। कुंवारी लड़कियों के बरसते बांस की लकड़ी से बचने कुछ युवक भाग जाते हैं, जबकि उम्रदराज लोग इसे मां भवानी का आशीर्वाद मान कर स्वयं सामने उपस्थित हो लाठी खाते हैं। गांव के जो व्यक्ति बाहर रहकर नौकरी या व्यवसाय कर रहे हैं, वह भी धूल पंचमी के दिन लट्ठमार होली में शामिल होने पंतोरा पहुंच जाते हैं।
बैगा के सपने में आई थी देवी
इस अनोखी पंरपरा के पीछे की कहानी भी काफी रोचक है। यहां रहने वाले एक युवक ने बताया कि वर्षों पहले गांव में महामारी फैल गई थी और पुरूषों की आकस्मिक मौत होने लगी थी। गांव में पुरूषों की संख्या काफी कम हो जाने से सभी चिंतित थे। इस बीच गांव के बैगा को सपने में मड़वारानी देवी आई और उससे कहा कि मड़वारानी मंदिर से मंगाए गए डांग (बांस का डंडा) की पूजा करने के बाद उससे पुरूषों की पिटाई की जाए, जिसके बाद ही मौत का सिलसिला थमेगा। गांव में तब से शुरू हुई यह परंपरा अब तक चली आ रही है।