नगर निगम कोरबा के विकास को कमीशन के घुन ने किया चट
कोरबा ll समाज व राष्ट्र के विकास के लिए स्वच्छ व पारदर्शी प्रशासन जरूरी होता है। जहां भ्रष्टाचार का घुन होगा, वहां विकास की उम्मीद करना बेमानी होता है। सरकार का यही प्रयास होता है कि स्वच्छ व पारदर्शी प्रशासन हो।
शांत व ईमानदारी की पहचान वाले कोरबा शहर में इस तरह के मामले बढऩा चिंतित करता है। घुसखोर इंजीनियर सोनकर और स्वर्णकार का रिश्वत लेते पकड़ा जाना मामला दर्शाता है कि लोगों का पैसे के आगे ईमान डोलने लगा है। लोग बिना मेहनत किए अधिक से अधिक धन पाने की लालसा में नैतिक व अनैतिक तरीकों में अंतर ही नहीं समझ पाते हैं। यह सही है कि आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में लोगों की जरूरतें बढ़ गई हैं लेकिन इसके लिए अनैतिक तरीके अपनाकर संपत्ति एकत्र की जाए यह सही नहीं है। किसी की मजबूरी में इस तरह हित साधने को भी सही नहीं ठहराया जा सकता है। समझना होगा कि अब वह समय नहीं रहा है कि कर्मचारी जैसा कहेंगे लोग वैसा ही करेंगे। तकनीक के इस युग में लोग अधिकारों के प्रति जागरूक हो चुके हैं। अगर कहीं अनियमितता हो रही है तो उसके खिलाफ आवाज उठाना अब लोगों का आ गया है। सूचना के अधिकार के तहत लोग कई विभागों की सूचना लेकर भ्रष्टाचार के मामलों को भी उजागर कर रहे हैं। यह सुखद पक्ष है। इससे औरों को भी सबक मिलता है। जरूरत इस बात की है कि देश का हर नागरिक अपने अधिकारों के प्रति जागरूक हो। जब हर पक्ष अपनी जिम्मेदारी को समझ कर अनियमितता के खिलाफ आवाज उठाएगा तो विकास कार्यों में अनियमितताएं नहीं होगी। ऐसा होने पर विकास गति भी तेज होगी। कोरबा के लिए यह वक्त खुद के लिए सख्त होने का है।
कोरबा नगर निगम प्रदेश का सबसे धनवान नगर निगमों में से एक है। लगभग 800 करोड़ से अधिक का बजट है लेकिन इतनी अधिक राशि कहां खर्च होती है यह आज तक जनता को पता नहीं चलता। तोड़ो-जोड़ो और लीपापोती में ही निगम का अधिकांश बजट खत्म हो जाता है। निगम के बजट पर भ्रष्टाचार भी हावी है जहां 18 से 22 फीसदी राशि घूस बांटने में ही खर्च हो जाती है। यह राशि निगम के अफसर से लेकर जनप्रतिनिधियों तक के बीच बंटती है। ठेका कंपनियां और निगम के अफसरों की सांठगांठ से भ्रष्टाचार की राशि बंट जाती है।यह कमीशन वर्क ऑर्डर देने से लेकर निर्माण कार्य और इसे पूरा होने के बाद चेक काटने तक में बंटता है। बिना घूस निगम में कोई ऐसा सेक्शन नहीं है जहां कार्य हो जाते हों।कई बार तो मन चाहे ठेकेदार को टेंडर नहीं मिलने पर टेंडर भी निरस्त कर दिया जाता हैl
नगर निगम के भ्रष्टाचार पर एसीबी की सर्जिकल स्ट्राइक ने भ्रष्टाचार की पोल खोल दी है भ्रष्टाचार के दयारा इतना बड़े हैं कि हर फाइल के साथ संबंध विभाग के अफसरों को कमीशन के बिना निगम में कोई काम नहीं होता जैसे-जैसे फाइल अधिकारियों की टेबल से होकर गुजरती है वैसे कमीशन बनता जाता हैl ठेकेदार घर पहुंचा कर अफसरों को कमीशन की राशि देते हैंl
हलाकी निगम आयुक्त ने घुस लेते पकड़े गए दोनो अधिकारियों को निलंबित कर दिया है मगर क्या इतने में ही जवाब दे ही खत्म हो जाती हैl
निगम में ही काम कर रहे ठेकेदार दबीआवाज में बताते हैं कि चुने हुए जनप्रतिनिधि, असिस्टेंट इंजीनियर, सब इंजीनियर अकाउंट शाखा, शाखा के साथ निगम के सभी कार्य और इससे जुड़े शाखाओं में कमीशन पहुंचता हैl
बहरहाल, एसीबी की कार्यवाहियों से नगर निगम में अभी कुछ दिन तक तो भ्रष्टाचार में लिपटे अफसर दुखी रहेंगेl