CHHATTISGARH PARIKRAMA

माघ मास की जया एकादशी व्रत कथा, पिशाच यौनी से मिलती है मुक्ति

*।।ॐ नमो भगवते वासुदेवाय।।*

*माघ शुक्ल एकादशी*

*जया एकादशी*

*एकादशी तिथि आरंभ- 07 फरवरी 2025 शुक्रवार को रात्रि 09 बजकर 26 मिनट से*

*एकादशी तिथि समाप्त- 08 फरवरी 2025 शनिवार को रात्रि 08 बजकर 15 मिनट पर*

*जया एकादशी व्रत तिथि- 08 फरवरी 2025 शनिवार*

*जया एकादशी व्रत पारण का समय- 09 फरवरी 2025 रविवार को प्रात: 07 बजकर 04 मिनट से प्रात: 09 बजकर 17 मिनट पर।*

*।।माघ शुक्ल एकादशी।।*

*।।जया एकादशी व्रत कथा।।*

*एक बार अर्जुन ने भगवान श्री कृष्ण से प्रश्न करते है — “हे भगवान ! अब कृपा कर आप मुझे माघ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी का क्या महत्त्व है विस्तारपूर्वक बताएं। माघ शुक्ल पक्ष की एकादशी में किस देवता की पूजा करनी चाहिए तथा इस एकादशी व्रत की कथा क्या है ? उसके करने से किस फल की प्राप्ति होती है शीघ्र ही बताएं?”*

*भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं – “हे अर्जुन ! माघ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को जया एकादशी कहते हैं। इस दिन उपवास रखने से मनुष्य भूत, प्रेत, पिशाच आदि की योनि से छुटकारा मिल जाता है। इस दिन विधिपूर्वक उपवास व्रत करना चाहिए। मैं अब तुमसे जया एकादशी व्रत की कथा कहता हूं।”*

*एक समय की बात है नंदन वन में उत्सव का आयोजन हो रहा था। देवता, ऋषि मुनि सभी उस उत्सव में मौजूद थे। उस समय गंधर्व गा रहे थे तथा गंधर्व कन्याएं नृत्य कर रही थी। इन्हीं गंधर्वों में एक माल्यवान नाम का गंधर्व भी था जो बहुत ही सुरीला गाता था। जितनी सुरीली उसकी आवाज़ थी उतना ही रूपवान भी था। गंधर्व कन्याओं में एक पुष्यवती नामक नृत्यांगना भी थी। पुष्पवती नामक गंधर्व कन्या ने माल्यवान नामक गंधर्व को देखते ही उस पर आसक्त हो गई तथा अपने हाव-भाव से उसे रिझाने का प्रयास करने लगी। माल्यवान भी उस पुष्पवती पर आसक्त होकर अपने गायन का सुर-ताल भूल गया। इससे संगीत की लय टूट गई और संगीत का सारा आनंद बिगड़ गया। सभा में उपस्थित देवगणों को यह अच्छा नहीं लगा। माल्यवान के इस कृत्य से इंद्र भगवान नाराज होकर उन्हें श्राप देते हैं कि स्वर्ग से वंचित होकर मृत्यु लोक में पिशाचों सा जीवन भोगो क्योंकि तुमने संगीत जैसी पवित्र साधना का तो अपमान किया ही है साथ ही सभा में उपस्थित गुरुजनों का भी अपमान किया है। इंद्रा भगवान के शाप के प्रभाव से दोनों पृथिवी पर हिमालय पर्वत के जंगल में पिशाची जीवन व्यतीत करने लगे।पिशाची जीवन बहुत ही कष्टदायक था। दोनों बहुत दुखी थे। एक बार माघ के शुक्ल पक्ष की जया एकादशी के दिन संयोगवश दोनों ने कुछ भी भोजन नहीं किया और न ही कोई पाप कर्म किया। उस दिन मात्र फल-फूल खाकर ही पूरा दिन व्यतीत किया। भूख से व्याकुल तथा ठंड के कारण बड़े ही दुःख के साथ पीपल वृक्ष के नीचे इन दोनों ने एक-दूसरे से सटकर बड़ी कठिनता पूर्वक पूरी रात काटी। पूरी रात अपने द्वारा किये गए कृत्य पर पश्चाताप भी करते रहे और भविष्य में इस प्रकार के भूल न करने की भी ठान लिया था सुबह होते ही दोनों की मृत्यु हो गई। अंजाने में ही सही उन्होंने एकादशी का उपवास किया था। भगवान के नाम का जागरण भी हो चुका था परिणामस्वरूप प्रभु की कृपा से इनकी पिशाच योनि से मुक्ति हो गई और पुनः अपनी अत्यंत सुंदर अप्सरा और गंधर्व की देह धारण करके तथा सुंदर वस्त्रों तथा आभूषणों से अलंकृत होकर दोनों स्वर्ग लोक को चले गए।*

*देवराज इंद्र उन्हें स्वर्ग में देखकर आश्चर्यचकित हुए और पूछा कि वे श्राप से कैसे मुक्त हुए। तब उन्होंने बताया कि भगवान विष्णु की उन पर कृपा हुई। हमसे अंजाने में माघ शुक्ल एकादशी यानि जया एकादशी का उपवास हो गया जिसके प्रताप से भगवान विष्णु ने हमें पिशाची जीवन से मुक्त किया।*

*जया एकादशी का व्रत करने से पूर्व में किये गए पाप कर्मों से मुक्ति मिलती है। तथा व्यक्ति नीच योनियों जैसे भूत, प्रेत, पिशाच की योनि से भी मुक्त हो जाता है।*

*नाड़ीवैद्य डॉ.नागेन्द्र नारायण शर्मा*

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