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ड्रग प्रतिरोधक क्षमता जानने टीबी संक्रमितों की होगी आरटीपीसीआर जांच

छत्तीसगढ़ का पहला आरटीपीसीआर लैब मेडिकल कॉलेज अस्पताल अंबिकापुर में,सोमवार को पुणे से पहुंची मशीन, अस्पताल के हमर लैब में इंजीनियर करेंगे इंस्टाल

अंबिकापुर। वैश्विक टीबी बीमारी के नियंत्रण हेतु चल रहे प्रयासों के बीच जांच सुविधाओं का विस्तार अंबिकापुर के राजमाता श्रीमती देवेंद्र कुमारी सिंहदेव शासकीय चिकित्सा महाविद्यालय संबद्ध जिला अस्पताल में हो रहा है। इसी क्रम में टीबी बीमारी की जांच के लिए आरटीपीसीआर मशीन पुणे से अस्पताल के हमर लैब में सोमवार को पहुंच चुकी है। इसे कंपनी के इंजीनियर द्वारा इंस्टाल किया जाएगा। 25 लाख की लागत से स्थापित हो रही जांच मशीन की उपलब्धता से टीबी के संक्रमितों को वास्तव में किस दवा का कितना डोज दिया जाना है, इसका पता चल सकेगा। प्रदेश के उपमुख्यमंत्री व स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव के प्रयास से शहर के शासकीय चिकित्सा महाविद्यालय से संबद्ध जिला अस्पताल में टीबी संक्रमण की जांच के लिए छत्तीसगढ़ के पहला आरटीपीसीआर मशीन लगने जा रहा है, जो जिले ही नहीं संभागवासियों के लिए बड़ी उपलब्धि है। इस जांच मशीन के लगने से जहां एक ओर मरीजों के रोग प्रतिरोधक क्षमता का सही आंकलन होगा, वहीं निर्धारित अवधि तक दवा का सेवन करने के बाद भी स्वास्थ्य लाभ नहीं मिलने जैसी नैदानिक परिस्थितियों से निजात मिलेगा। विशेषज्ञ चिकित्सकों का कहना है बढ़ती दवा प्रतिरोधक क्षमता भी टीबी नियंत्रण के लिए गंभीर खतरा पैदा कर सकती है, इसे देखते हुए बेहतर टीबी निदान और परीक्षण की कड़ी को बढ़ावा देते हुए हमर लैब में आरटीपीसीआर की जांच सुविधा सुनिश्चित की गई है। अभी तक टीबी के संभावित मरीजों की जांच छाती का एक्स-रे, ट्रू नॉट सहित अन्य जांच से की जाती थी।

एक साथ होगी 32 खखार की जांच

शासकीय चिकित्सा महाविद्यालय संबद्ध जिला अस्पताल के टीबी नियंत्रण कार्यक्रम के नोडल अधिकारी डॉ. शैलेंद्र गुप्ता ने बताया कि टीबी की जांच के लिए लगने वाले आरटीपीआर मशीन से एक साथ 32 खखार के सैंपल की जांच होगी। इस जांच से इस बात का सटीक पता चल पाएगा कि टीबी इंफेक्शन से पीड़ित के लिए कौन सा दवा कारगर होगा। उन्होंने बताया कि वर्षों से चार दवाइयां टीबी संक्रमितों को दी जा रही है। इन दवाओं में से कुछ दवाएं टीबी के कीटाणुओं के लिए काम नहीं आ पाती हैं। कई बार छह माह तक दवा का डोज लेने के बाद भी बीमारी ठीक नहीं हो पाती है, ऐसे में आरटीपीसीआर जांच सुविधा टीबी के संक्रमितों के लिए उपयोगी साबित होगी। टीबी से संक्रमित व्यक्ति को जांच रिपोर्ट के अनुसार दवा की उपलब्धता सुनिश्चित कराई जाएगी।

आईसीएमआर प्रोजेक्ट के तहत स्थापना

शासकीय चिकित्सा महाविद्यालय के टीबी अस्पताल में संक्रमितों को सही जांच की सुविधा का लाभ मिले, इस उद्देश्य से आईसीएमआर ने मेगा एलिमिनेशन प्रोजेक्ट के तहत आरटीपीसीआर जांच के लिए मशीन की उपलब्धता सुनिश्चित की है। टीबी नियंत्रण कार्यक्रम के नोडल अधिकारी डॉ. शैलेंद्र गुप्ता ने बताया कि अभी तक टीबी के संक्रमितों को चार प्रकार की दवाएं दी जाती थी, जिसका उन्हें छह माह तक सेवन करना होता है। आरटीपीसीआर जांच के बाद किस दवा का कितना डोज टीबी से संक्रमित को दिया जाना है, इसका पता चलेगा और संक्रमित को राहत मिलेगी।

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