मां दंतेश्वरी के दरबार पहुंचे विकास महतो, पूजा आराधना कर मांगी जिले व प्रदेश वासियों की खुशहाली
विकास महतो प्रदेश कार्यसमिति सदस्य,छत्तीसगढ़ ने अपने जगदलपुर प्रवास के दौरान दंतेवाड़ा के बस्तर में स्तिथ 14वीं शताब्दि के पौराणिक एवं सिद्ध शक्तिपीठ मां दंतेश्वरी की विधि विधान से पूजा अर्चना कर जिले तथा प्रदेश वासियों के लिए सुख, समृधि एवं खुशहाली की कामना की.
आइए जानते हैं दंतेवाड़ा की मां दंतेश्वरी मंदिर की कुछ रोचक बातें
भारत के प्रमुख राज्यों में माने जाने वाले छत्तीसगढ़ का एक प्रमुख जिला दन्तेवाड़ा है जो प्रमुख शक्ति पीठ के नाम से जाना जाता है. यहां दंतेश्वरी मंदिर जो दंतेवाड़ा के बस्तर में स्थित है. यहां का अनुपम सौंदर्य भक्तों के मन को धार्मिक भाव से भर देता है. देवी के दर्शन हेतु दूर-दूर से लोग यहां पहुँचते हैं. मान्यता है कि देवी के दांत के गिरने पर यहां का नाम दंतेवाड़ा पड़ा तथा देवी को दंतेश्वरी देवी कहा जाता है.
प्रकृति के रमणीय स्थलों में से एक दंतेवाड़ा माँ के भक्तों का पवित्र स्थल है. शक्तिपीठ दंतेवाड़ा के दंतेश्वरी मंदिर की ऐतिहासिकता एवं उसके पौरणिक महत्व के कारण ही यह एक लोक प्रसिद्ध स्थल है. मान्यता है की माता सती का दांत यहां गिरा था इसलिए देवी को यहां पर दंतेश्वरी माता के रूप में जाना जाता है. इस स्थान को शक्ति पीठ के रूप में पूजा जाता है.
*दंतेश्वरी मंदिर का पौराणिक महत्व*
दंतेवाड़ा में स्थित दंतेश्वरी बस्तर की अधिष्ठात्री देवी के रूप में पूजी जाती हैं. हरे भरे वनों एवं पहाड़ियों से परिपूर्ण इस स्थान में माँ सती के दाँत गिरने की पौराणिक कथा का महत्व दृष्टिगोचर होता है इसके अनुसार माना जाता है की जब एक बार देवी सती के पिता दक्ष ने अपने प्रजापति होने पर एक महायज्ञ का आयोजन किया जिसमें उन्होंने सभी देवों को निमंत्रण दिया किंतु केवल अपनी पुत्री सती व उनके पति भगवान शिव को नहीं बुलाया.
क्योंकि उनके मन में शिव के प्रति ईर्ष्या व्याप्त थी. सती को जब इस बात का भान हुआ कि उसके पिता ने यज्ञ का आयोजन किया है तो उनके मन में भी यज्ञ में शामिल होने की इच्छा जागृत हुई और उन्होंने भगवान शिव से जाने की आज्ञा मांगी पहले तो प्रभू ने देवी को समझाया कि बिना बुलाए जाना उचित नहीं है परंतु देवी के आग्रह करने पर शिव ने उन्हें जाने की आज्ञा प्रदान की पिता के घर जाकर उन्हे पिता के कटु वाणी से बहुत आहत हुई परंतु जब उन्होने देखा की यज्ञमंडप में सभी देवताओं के भाग हैं लेकिन भगवान शिव का भाग नहीं है इस पर उन्होंने पिता दक्ष से पूछा तो दक्ष ने भगवान शिव का अपमान करना शुरू कर दिया अपने पति के बारे में अपमान जनक शब्दों को सुन वह बहुत आहत हुई ओर वहीं उस यज्ञ की अग्नि में कूद पड़ी.
चारों ओर हाहाकार मच गया, भगवान शिव को इस बात का पता चला तो उन्होंने दक्ष का अंत कर दिया और यज्ञ को नष्ट कर दिया परंतु बाद में दक्ष को जीवन दान दिया. सती के शव को उठाए भगवान शिव ब्रह्माण्ड में विचरने लगे जिस कारण सती के अंग पृथ्वी में चारों ओर गिरे और जहां भी उनके अंग गिरे वह स्थान शक्ति पीठ कहलाए इसी प्रकार दंतेश्वर में माँ का दांत गिरा जिस कारण यह स्थान शक्ति पीठ कहलाया.
*दंतेश्वरी मंदिर कथा.*
प्राकृतिक एवं नैसर्गिक सौंदर्य से भरपूर यह स्थल धार्मिक आस्था का केंद्र रहा है. इस स्थान से कई किंवदंतीयां भी जुड़ी हुई हैं मान्यता है कि यहां चौरासी गांवों के देव विराजमान हैं जिसमें माँ दंतेश्वरी सबसे प्रमुख देवी के रूप में पूजी जाती हैं. एक मान्यता अनुसार माई दंतेश्वरी स्वर्ण अंगूठी के रूप में यहां प्रकट हुई थी जिसके अनुसार शंकिनी डंकिनी के किनारे जब देवी अंतर्ध्यान हुई तब उन्होनें अपनी सोने की अंगूठी फेंकी थी.
जो सोनेकन्हार गांव में गिरी थी अतः जिस कारण देवी यहां राजाओं की कुल देवी रूप में विराजमान है. शांत घने जंगलों के मध्य में स्थित यह मंदिर आध्यात्मिक शांति देता है. यहां की एक अन्य कथा अनुसार कहा जाता है कि जब काकातिया वंश के राजा अन्नम देव यहां आए तब माँ दंतेवश्वरी ने इन्हें दर्शन दिए थे अन्नम देव को माता ने वरदान दिया कि जहां तक भी वह जा सकेगा वहां तक देवी उनके साथ चलती रहेंगी. किंतु राजा को पिछे मुड़ कर नहीं देखना है अतः राजा जहां- जहां भी जाता देवी उसके पीछे-पीछे चलती रहती और ज़मीन पर उनका राज हो जाता इस तरह से यह क्रम चलता रहा अन्नम देव कई दिनों तक चलते रहे जब वह शंखिनी एवं डंकिनी नंदियों के संगम तट पर पहुंचे तो नदी पार करते समय उन्हें माँ की पायल की आवाज़ सुनाई न पडी.
पर उनका राज हो जाता इस तरह से यह क्रम चलता रहा अन्नम देव कई दिनों तक चलते रहे जब वह शंखिनी एवं डंकिनी नंदियों के संगम तट पर पहुंचे तो नदी पार करते समय उन्हें माँ की पायल की आवाज़ सुनाई न पडी.
क्योंकी पानी में पायल की आवाज़ सुनाई न पडी तथा माता के रूक जाने की आशंका से उन्होंने पीछे मुड़कर देखा तो देवी नदी पार कर रही थी परंतु राजा के रूकते ही देवी भी रूक गई व वरदान के अनुरूप अंतर्ध्यान हो गई इस पर राजा ने शंखिनी-डंकिनी नदी के संगम किनारे ही माँ के मंदिर का निर्माण करवाया तब से देवी इसी स्थान पर विराजमान हैं.