CHHATTISGARH PARIKRAMA

50 सीटों पर प्रत्याशी उतारेगी सर्व आदिवासी समाज, विश्व आदिवासी दिवस पर होगा जेल भरो आंदोलन

टी.एस.बाबा ने बीच रास्ते में बेसहारा छोड़ दिया, पेशा कानून यदि वे चाहते तो अच्छे से लागू हो सकता था

अम्बिकापुर/सर्व आदिवासी समाज के नेता एवं पूर्व सांसद अरविन्द नेताम सरगुजा प्रवास पर हैं, इस दौरान उन्होंने पत्रकार वार्ता कर मिडिया से बातचीत की। पूर्व सांसद अरविन्द नेताम ने कहा कि आदिवासीयों के अधिकारों पर कुठाराघात हो रहा है और पिछले 15 वर्षों से हम यह सब देख रहे हैं। अपने समाज से जो भी आदिवासी नेता भाजपा एवं कांग्रेस से जीत कर जाता है, वह जीतने के बाद चुप्पी साध लेता है, आदिवासियों का शोषण, उनके साथ हो रहे अत्याचार, आदिवासियों के अधिकारों पर अतिक्रमण पर ये नेता कुछ नहीं बोलते। सर्व आदिवासी समाज ने यह फैसला लिया है कि अनुसूचित जनजाति के लिये जो सीट आरक्षित है वहां तो हम प्रत्याशी उतारेंगे ही, इसके साथ-साथ ऐसे अनारक्षित सीट जहां पर 15 से 20 की संख्या में आदिवासी मतदाता हैं, वहां पर भी हम चुनाव लड़ेंगे, इस तरह से कुल 50 सीटों पर चुनाव लड़ने की हमारी तैयारी है। पूर्व सांसद अरविन्द नेताम ने कहा कि राज्य में पेशा कानून की हत्या कर दी गई। अनुसूचित क्षेत्रों में क्या हो रहा है किसी से छुपा नहीं है, सरकार मौन है और अधिकारी राज हावी है। त्रि-स्तरीय पंचायती राज व्यवस्था से जुड़े आदिवासी जनप्रतिनिधियों की सुनवाई ही नहीं हो रही है।
सरगुजा जिले के लुण्ड्रा जनपद पंचायत का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि अनुसूचित क्षेत्रों में जनपद पंचायत में विकास के कार्य बिना सामान्य सभा के आयोजन के कैसे हो रहे हैं, यह समझा जा सकता है। यह केवल लुण्ड्रा जनपद की बात नहीं है, पुरे छत्तीसगढ़ में आदिवासीयों के साथ यह सरकार सौतेला व्यवहार कर रही है। हम सब ने सामाजिक बैठकें कि है और वहां से जो बातें निकल कर आयी है, सबका जो मत है उसके अनुसार हम सब राजनीति में सीधे तौर पर उतरेंगे और लगभग 50 सीटों पर आगामी चुनाव में अपना प्रत्याशी उतारेंगे। अरविन्द नेताम ने कहा कि सर्व आदिवासी समाज द्वारा प्रत्याशी उतारने का प्रमुख कारण यह है कि अब तक जो भी समाज का प्रतिनिधित्व करते हैं, जो लोग भी विधायक एवं सांसद बन कर पहुंचते हैं, वे आदिवासियों के मुद्दे को मुखरता के साथ संसद एवं विधानसभा में रख नहीं पाते। सभी अपने-अपने दल की ओर से बात करते हैं, ऐसे में समाज ने फैसला लिया है कि ऐसे लोगों को अब चुनकर भेजना है जो हमारी बातों को संसद एवं विधानसभा में मुखरता से रखे, हमारी लड़ाई लड़े, संघर्ष करे। हमने दोनों ही पार्टियों को देख लिया है कोई भी आदिवासियों के लिये कुछ करना नहीं चाहती। पत्रकारों द्वारा सरगुजा एवं बस्तर क्षेत्र में तृतीय एवं चतुर्थ वर्ग की नियुक्ति में स्थानीय को प्राथमिकता के सवाल पर अरविन्द नेताम ने कहा कि यही तो षड़यंत्र है आदिवासियों को कैसे और पीछे किया जा सके, इस सरकार का ध्यान इसी में है, यही कारण है कि आदिवासियों के पक्ष में न तो सरगुजा व बस्तर में नियुक्ति में प्राथमिकता के मामले में सरकार अपना पक्ष स्पष्ट रूप से न्यायालय में रख सकी और न ही आरक्षण के मामले में। इस सरकार ने पुरे आरक्षण के प्रक्रिया को ही फंसा दिया है। यही कारण है कि आदिवासी समाज लगातार नाराज़ है और उसने फैसला किया है कि आगामी चुनाव में लगभग 50 सीटों पर हम अपना प्रत्याशी उतारेंगे।

विश्व आदिवासी दिवस पर सर्व आदिवासी समाज करेगा जेल भरो आंदोलन
पत्रकारों को सम्बोधित करते हुए अरविन्द नेताम ने कहा कि विश्व आदिवासी दिवस पर हम जेल भरो आंदोलन करेंगे, हमने पिछले वर्ष हसदेव के आंदोलन को अपना समर्थन दिया था। हम आंदोलन के समर्थन में थे, हमने किसी सरकार अथवा प्रशासन के विरूद्ध एक शब्द भी नहीं बोला था, हमने आंदोलन का केवल अपना समर्थन दिया था। किन्तु सरकार के इशारे पर जिला प्रशासन ने हमारे समाज के लोगों पर एफआईआर किया है। इसी मामले को लेकर समाज ने फैसला लिया है कि हम जेल भरो आंदोलन करेंगे। सरकार यदि लोगों को डराना चाहती है और जबरन एफआईआर कर रही है तो क्यों न हम सब अपनी गिरफ्तारी दें और जेल जायें।

टी.एस.बाबा ने बीच रास्ते में बेसहारा छोड़ दिया, पेशा कानून यदि वे चाहते तो अच्छे से लागू हो सकता था
पंचायती राज मंत्री होने के नाते टी.एस.सिंह देव ने पेशा कानून को लेकर पुरे प्रदेश में दौरा किया था और उनसे हमसे काफी उम्मीद थी, लेकिन जब कानून को अच्छे से लागू करने की जरूरत थी तब तो टी.एस.बाबा ने तो विभाग ही छोड़ दिया। यदि विभाग छोड़ भी दिया था तो टी.एस.बाबा को चाहिए था कि पेशा कानून पर कैबिनेट में अपना मत रख सकते थे, जो एक मंत्री के नाते नोट किया जा सकता था, किन्तु उन्होंने ऐसा नहीं किया। यदि छोड़ना ही था तो पुरा विभाग छोड़ते एक क्यों छोड़ा समझ से बाहर है। उन्होंने हम लोगों को बीच रास्ते में बेसहारा छोड़ दिया। यदि वे चाहते तो अच्छे से पेशा कानून लागू हो सकता था।

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